संपर्क टूटा है हिम्मत नहीं, चांद को पा लेने की हसरत और बढ़ गयी है

चंद्रयान-2 क्यों सफल नहीं रहा इसके लिए तो हमारे वैज्ञानिक डेटा का विश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुँचेंगे ही लेकिन यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने वाकई कठिन समय में सिर्फ नेता नहीं बल्कि एक संरक्षक के तौर पर अपनी छाप छोड़ी है।



'ख्वाब टूटे हैं मगर हौसले जिन्दा हैं, हम वो हैं जहाँ मुश्किलें शर्मिंदा हैं...!' जी हाँ, यह पंक्तियाँ भारतीय अनुसंधान संगठन यानि इसरो पर एकदम फिट बैठती हैं जिसके वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को सफल बनाने के लिए वर्षों तक अथक परिश्रम किया, अपनी रातों की नींद की परवाह नहीं की बस मिशन मोड में काम करते रहे ताकि भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन जाए। 'चंद्रयान-2' के लैंडर 'विक्रम' के चांद की सतह को छूने से चंद मिनटों पहले जमीनी स्टेशन से उसका संपर्क टूटने से करोड़ों देशवासियों को निराशा जरूर हुई है लेकिन उम्मीदें नहीं टूटी हैं। वो कहते हैं ना कि


सफलता एक दिन में नहीं मिलती,मगर ठान लो तो एक दिन ज़रूर मिलती है



चंद्रयान-2 क्यों अपना मिशन पूर्ण रूप से सफल नहीं कर पाया इसके लिए तो हमारे वैज्ञानिक डेटा का विश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुँचेंगे ही लेकिन यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने वाकई कठिन समय में सिर्फ नेता नहीं बल्कि एक संरक्षक के तौर पर अपनी छाप छोड़ी है। इसरो प्रमुख के. सिवन इस महत्वाकांक्षी मिशन की असफलता को देख रो पड़े तो प्रधानमंत्री ने उन्हें गले लगाया और उनकी पीठ थपथपायी, ऐसा करते समय प्रधानमंत्री सिर्फ इसरो प्रमुख की पीठ नहीं थपथपा रहे थे, सिर्फ इसरो प्रमुख को ढाढस नहीं बंधा रहे थे, वह इसरो के हर वैज्ञानिक और वैज्ञानिक बनने की चाहत रखने वाले को निराश नहीं होने का संदेश दे रहे थे, प्रधानमंत्री हर भारतीय को यह संदेश दे रहे थे कि असफलता से निराश नहीं हों, सबके कंधों पर प्रधानमंत्री के समर्थन का हाथ है। वाकई यह एक बहुत बड़ा संबल होता है जब किसी बड़े मिशन की असफलता के समय देश का मुखिया चट्टान की तरह टीम के साथ खड़ा हो जाये और उसमें पूरा विश्वास जगाये। मिशन की असफलता से सिर्फ वैज्ञानिकों की नींद नहीं उड़ी बल्कि प्रधानमंत्री भी नहीं सोये। वह रात लगभग तीन बजे तक इसरो कार्यालय में रहे और उसके बाद सुबह फिर इसरो कार्यालय पहुँच गये और वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि वे मिशन में आई रुकावटों के कारण अपना दिल छोटा नहीं करें, क्योंकि ''नई सुबह होगी और बेहतर कल होगा।'' प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि चंद्रमा को छूने की इच्छाशक्ति अब और अधिक मजबूत तथा और प्रबल हो गई है।

 

जहाँ तक चंद्रयान मिशन-2 से संबंधित ताजा जानकारी का सवाल है तो माना जा रहा है कि इसरो ने 'विक्रम' लैंडर और उसमें मौजूद 'प्रज्ञान' रोवर को संभवत: खो दिया है। विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सामान्य तरीके से नीचे उतरा। इसके बाद लैंडर का धरती से संपर्क टूट गया। तब से लेकर अब तक लैंडर से कोई संपर्क नहीं है। माना जा रहा है कि यह लगभग समाप्त हो गया है और अब लैंडर से दोबारा संपर्क स्थापित करना बहुत ही मुश्किल है। चंद्रयान-2 मिशन के तहत भेजा गया 1,471 किलोग्राम वजनी लैंडर 'विक्रम' भारत का पहला मिशन था जो स्वदेशी तकनीक की मदद से चंद्रमा पर खोज करने के लिए भेजा गया था। इसे चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए डिजाइन किया गया था और इसे एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिन के बराबर काम करना था। 

 

यहाँ हम आपको यह भी जानकारी देना चाहेंगे कि चंद्रयान-2 मिशन पूरी तरफ असफल नहीं रहा है। यह सही है कि चांद के अनजाने हिस्से तक पहुँचने और वहाँ के हालात से दुनिया को रूबरू कराने का हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया लेकिन चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में सुरक्षित है और सामान्य तरीके से काम कर रहा है। यह ऑर्बिटर हमारे वैज्ञानिकों को बता देगा कि कहाँ गड़बड़ हुई। 2379 किलोग्राम ऑर्बिटर के मिशन का जीवन काल एक साल है। उल्लेखनीय है कि 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को जीएसएलवी एमके-3 एम1 रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। चंद्रयान-2 ने धरती की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा 14 अगस्त को इसरो द्वारा 'ट्रांस लूनर इन्सर्शन' नाम की प्रक्रिया को अंजाम दिये जाने के बाद शुरू की थी। यह प्रक्रिया अंतरिक्ष यान को 'लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री' में पहुंचाने के लिये अपनाई गई। अंतरिक्ष यान 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था। चंद्रयान-2 के 'ऑर्बिटर' में चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करने और पृथ्वी के इकलौते उपग्रह के बाह्य परिमंडल का अध्ययन करने के लिए आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं। इसरो ने दो सितंबर को ऑर्बिटर से लैंडर को अलग करने में सफलता पाई थी, लेकिन शनिवार तड़के विक्रम का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था

 

देखा जाये तो यह मिशन अपने आप में काफी कठिन था क्योंकि चांद के इस हिस्से पर अब तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुँच पाया है। इसलिए यहां की सतह के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। वैसे तो चांद पर मानव को पहुँचे हुए 50 साल हो गये हैं लेकिन दुनिया के कई ऐसे बड़े देश हैं जो चांद को आज तक नहीं छू पाये। रूस की ही बात लीजिये। उसने 1958 से 1976 के बीच चांद की तरफ लगभग 33 मिशन रवाना किए, लेकिन इनमें से 26 विफल रहे। अमेरिका के तो 1958 से 1972 तक 31 चांद मिशनों में से 17 असफल रहे। अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चांद पर 6 मानव मिशन भी भेजे थे। इन 6 मानव मिशनों में 24 अंतरिक्ष यात्री भेजे गये लेकिन उनमें से आधे ही चांद पर उतर पाने में सफल रहे। यही नहीं इसी साल की उदाहरण लीजिये जब इजराइल का चांद मिशन पूरा नहीं हो पाया और 3 अप्रैल को चंद्रमा से 10 किलोमीटर दूर इसका पृथ्वी से संपर्क टूट गया।

 

इसरो ने देश को समय-समय पर गौरवान्वित किया है। दुनिया को याद है कि जब इसरो ने 1993 में पीएसएलवी के माध्यम से पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा था तब यह सुविधा सिर्फ रूस के पास थी। यही नहीं भारत का मानव रहित चंद्रयान मिशन 2008 में जब सफल रहा था तब दुनिया के मात्र 6 देश थे जो यह कारनामा कर पाये थे। मंगलयान को याद कीजिये, भारत का यह महत्वाकांक्षी मिशन पहले ही प्रयास में सफल रहा था। भारत खुद का नेविगेशन सिस्टम विकसित कर चुका है और दुनिया में सिर्फ भारत, अमेरिका और रूस ही ऐसे हैं जिनका खुद का नेविगेशन सिस्टम है। इसरो के नाम एक साथ 104 सैटेलाइट प्रक्षेपित करने का रिकॉर्ड है जोकि दुनिया का कोई देश अब तक नहीं तोड़ पाया है। अंत में कहा जा सकता है-

 

हर रोज़ गिर कर भी

मुकम्मल खङ़े हैं

ऐ ज़िन्दगी देख,

मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं

 

-नीरज कुमार दुबे