उत्तराखंडः किसानों ने जैविक कृषि एक्ट को बताया जल्दबाजी, कहा - पहले बाजार दो

 


उत्तराखंडः किसानों ने जैविक कृषि एक्ट को बताया जल्दबाजी, कहा - पहले बाजार दो




खास बातें



  • किसान बोले ऑर्गेनिक खाद के नाम पर जो बिक रहा उस पर विश्वास कैसे हो 



 

जैविक खेती न सिर्फ किसानों की आर्थिकी के लिए बल्कि देश के स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर है। लेकिन, यह सब तब होगा जब किसानों के पास बाजार हो। उसे सरकार की ओर से मार्गदर्शन दिया जाए। यह कहना है भारतीय किसान संघ से जुड़े पदाधिकारियों और किसानों का। 
 

किसानों का कहना है कि जैविक खेती तो ठीक है, लेकिन यदि एकदम से रासायनिक खाद बंद हो जाते हैं तो शुरूआत के दो साल बेहद ही कम पैदावार होती है। ऐसी स्थिति में किसान के सामने रोजी रोटी का भी संकट आ जाएगा। ऐसी दशा में सरकार को चाहिए कि वह इस निर्धारित समय में किसानों को कोई मदद करे। किसानों के अनुसार जैविक उत्पाद बेचने के लिए कोई निर्धारित बाजार नहीं है। यदि सरकार बाजार उपलब्ध कराए तो किसान इसे अपनाएंगे।

जबकि, अभी तक जो भी किसान जैविक खेती कर रहे हैं उन्हें खुद से ही मार्केटिंग कर अपने उत्पाद बेचने पड़ रहे हैं। इसके साथ ही किसानों का कहना है कि जो वर्तमान में बाजारों में जैविक खाद कहकर बेचे जा रहे हैं उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है कि वे असली हैं या नकली। दरअसल, प्रदेश में 10 ब्लॉकों को जैविक खेती के लिए चुना गया है, जिनमें रासायनिक खाद के प्रयोग पर प्रतिबंध और उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान किया गया है। 

सभी को साथ आना होगा। तभी देश की कृषि की हालत सुधर सकती है। जैविक खेती देश की आर्थिकी और जनता के स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। लेकिन, इससे पहले चाहिए कि किसानों को मार्केट मिले।
-डीएन मिश्रा, प्रदेश संरक्षक भारतीय किसान संघ 

जैविक खेती को बढ़ावा कानून से नहीं बल्कि समझ से मिलेगा। ऐसे में सरकार, जनता और किसानों को यह समझना होगा कि हम सिर्फ जैविक खेती को ही बढ़ावा दें। सबसे पहले किसानों के लिए एक निश्चित मार्केट की व्यवस्था होनी चाहिए।
-भगवान सिंह, किसान खाराखेत 

किसान खुद ही सबसे बड़ा वैज्ञानिक है। उसे पता है कि क्या इस्तेमाल करे और क्या नहीं। यह कानून से नहीं बल्कि उत्पाद के अच्छे दाम देने से होगा। सबसे पहले चाहिए कि किसान को प्रशिक्षित किया जाए और उसके बाद बाजार तैयार किया जाए। तब किसी कानून को लागू किया जाना चाहिए।
- सतपाल राणा, किसान व भारतीय किसान संघ के प्रचारक 


सरकार घटिया बीज बेचने वालों पर लगाम लगाए



प्रदेश में उत्तराखंड फल पौधशाला विनियमन विधेयक (नर्सरी एक्ट) को राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके तहत किसानों को घटिया पौध बेचकर धोखाधड़ी करने वाले नर्सरी संचालकों को छह माह की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना भुगतना पड़ेगा। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से नर्सरी संचालकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है। कुछ संचालक इसे सही बता रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि एक्ट से छोटी नर्सरियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

विगत कई सालों से नर्सरी का संचालन कर रही अनुराग नर्सरी की संचालिका प्रेमलता पुंडीर का कहना है कि  एक्ट का सीधा प्रभाव छोटी नर्सरियों पर पड़ेगा। क्योंकि छोटी नर्सरियां खुद पौध तैयार नहीं करती। वह बाहर से पौध खरीदकर लाते हैं। उदाहरण के तौर पर आम की कई किस्में होती हैं। पौध के समय यह पता नहीं चलता कि कौन सी पौध किस किस्म की है।

तीन-चार साल बाद जब पौध पेड़ बनकर फल देने लगता है, तभी इसकी असली पहचान होती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह पौध के थोक विक्रेताओं और घटिया बीज के विक्रेताओं पर नजर रखनी चाहिए। अगर बीज घटिया नहीं होगा तो पौधा घटिया होने का सवाल ही नहीं उठता।

सक्सेना नर्सरी की देखरेख करने वाले प्रकाश का कहना है कि यह एक्ट सही है। इससे घटिया पौध बेच रहे नर्सरी संचालकों पर लगाम लगेगी। वर्तमान में सभी पौध हाइब्रिड के होते हैं। इसलिए उनका शुरू से पता चल जाता है कि वह फल देेंगे या नहीं। लेकिन कुछ नर्सरी संचालक घटिया पौध बेचकर अन्य नर्सरियों को भी बदनाम करते हैं। इसके अलावा सरकार को किसानों और नर्सरी संचालकों को उन्नत किस्म के बीच उपलब्ध भी कराने चाहिए।

ज्योति नर्सरी की देखरेख करने वाले अशोक का कहना है कि उत्तर प्रदेश में ऐसी सजा का प्रावधान है। कुछ लोग ज्यादा लाभ के चक्कर में अच्छी पौध के साथ घटिया किस्म की पौधे भी किसानों को बेचते हैं। उससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। यह बड़ी नर्सरियों में किया जाता है। एक्ट का फायदा होगा। लेकिन सरकार को चाहिए कि वह बड़े नर्सरियों का वैज्ञानिकों को साथ रखकर नर्सरियों की जांच कराएं। 




पौध उगाने वालों को प्रशिक्षित करें सरकार: डॉ. जोशी



नर्सरी एक्ट के प्रावधानों पर हैस्को के संस्थापक एवं पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि सबसे पहले किसानों तक घटिया पौध न पहुंचे इसके लिए सरकार को चाहिए नर्सरी उगाने वालों को प्रशिक्षित करना चाहिए। इसके लिए सरकार को विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थानों की मदद लेनी चाहिए।

सरकार यह सुनिश्चित करे कि न किसानों और न नर्सरी वालों को घटिया प्लाटिंग मैटेरियल मिले। क्योंकि नर्सरी में पौध उगाने वाले को जैसा बीज मिलेगा उसी के हिसाब से वह पौध तैयार करेगा। इसलिए एक्ट में केवल नर्सरी संचालकों को नहीं बल्कि बीज विक्रे ता और इस क्षेत्र में रिसर्च करने वालों को भी सजा देने का प्रावधान होना चाहिए। कुल मिलाकर सरकार को घटिया बीज पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। 

कंपनियां कर रही कृषि के साथ खिलवाड़ : डॉ. वंदना 

राज्य के नर्सरी एक्ट के बारे में पर्यावरणविद् डॉ. वंदना शिवा ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्ट को नर्सरी के लिए खतरनाक बताया। कहा, सरकार ने छोटी नर्सरियों के लिए सख्त कानून बनाया है लेकिन बड़ी बीज कंपनियों के खिलाफ कोई नियम नहीं बनाया। जबकि यह देश की कृषि के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। यह कंपनियां जीएम सीड के माध्यम से जैव विविधता को खत्म कर रही हैं।

जबकि नर्सरियां अपने स्तर से पौधों को विकसित करती हैं। उनके पास ऐसी कोई विशेषज्ञता भी नहीं है और न सरकार से कोई मदद मिलती है। यदि सरकार को जुर्माना लगाना है तो सीड कंपनियों को भेजना चाहिए। इस समय कपास किसानों का बुरा हाल है। उन्होंने पहले देसी कपास छोड़कर बीटी कॉटन उगाया, जो उन्हें बर्बादी की ओर ले गया। अब फिर से वह देसी कपास पर लौटने लगे हैं।